Saturday, August 15, 2009

मैं तुम्‍हें आजादी देती हूं

जाओ
तुम आजाद हो
मैं तुम्‍हें मुक्‍त करती हूं

यह दिन है
हम सबकी आज़ादी का
हम दोनों आज़ाद हैं
तुम कहीं जाओ
किसी के साथ रहो, सोओ
मैं भी रहना चाहती हूं
ऐसी ही आज़ादी में

बहुत हुआ यार
यह बंधनों में जकड़ा हुआ रिश्‍ता
अब हम एक खुला रिश्‍ता चाहते हैं
आज़ाद हो तुम
और आज़ाद हूं मैं
तमाम वर्जनाओं से
समाजी बंधनों से
मानसिक वेदनाओं से
अनजानी घुटन से

जाओ
आज इस आज़ादी के दिन
मैं तुम्‍हें आज़ादी देती हूं

Friday, August 14, 2009

मैं तुम्‍हारी राधा नहीं हूं











ना तो तुम मेरे कृष्‍ण हो
और ना ही मैं तुम्‍हारी राधा हूँ




हम सिर्फ प्रेम करते हैं
लेकिन राधा-कृष्‍ण जैसा नहीं
यह बात हम अच्‍छी तरह जानते हैं
मन ही मन मानते हैं
बेवफाई के इस जमाने में
अब कहां संभव है वो प्रेम

आओ
आज जन्‍माष्‍टमी के दिन हम
फिर बेवफाई करें
तुम जाओ अपनी किसी राधिका के पास
और मैं ढंढूं कोई कृष्‍ण सा सखा




पता नहीं
कब खत्‍म होगी ये तलाश
लगता है चिता पर ही होगी



फिर भी

कोशिश जारी रखने में कोई हर्ज नहीं

Sunday, August 9, 2009

कितनी ग़लत बात है ना

जब तुम नहीं आते
मैं राह तकती रहती हूं तुम्‍हारी
और मेरे ना आने पर तुम

कब तक हम यूं ही राहें तका करेंगे
कब तक यह सिलसिला चलेगा

तुम मेरे हो
मैं तुम्‍हारी
बस कहने भर के लिए ही ना
कब तुम
संपूर्ण मेरे होओगे
और कब मैं तुम्‍हारी

ये मिलना
और बिछुड़ना
कब खत्‍म होगा

कभी तो होगा ही खत्‍म
मैं उस दिन का इंतजार करूंगी
पर तुम्‍हारा नहीं
और कहती हूं तुमसे
तुम भी ना करना

फल
प्रतीक्षा के ही मीठे होते हैं