जाओ
तुम आजाद हो
मैं तुम्हें मुक्त करती हूं
यह दिन है
हम सबकी आज़ादी का
हम दोनों आज़ाद हैं
तुम कहीं जाओ
किसी के साथ रहो, सोओ
मैं भी रहना चाहती हूं
ऐसी ही आज़ादी में
बहुत हुआ यार
यह बंधनों में जकड़ा हुआ रिश्ता
अब हम एक खुला रिश्ता चाहते हैं
आज़ाद हो तुम
और आज़ाद हूं मैं
तमाम वर्जनाओं से
समाजी बंधनों से
मानसिक वेदनाओं से
अनजानी घुटन से
जाओ
आज इस आज़ादी के दिन
मैं तुम्हें आज़ादी देती हूं
Saturday, August 15, 2009
Friday, August 14, 2009
मैं तुम्हारी राधा नहीं हूं
ना तो तुम मेरे कृष्ण हो
और ना ही मैं तुम्हारी राधा हूँ
और ना ही मैं तुम्हारी राधा हूँ
हम सिर्फ प्रेम करते हैं
लेकिन राधा-कृष्ण जैसा नहीं
यह बात हम अच्छी तरह जानते हैं
मन ही मन मानते हैं
बेवफाई के इस जमाने में
अब कहां संभव है वो प्रेम
आओ
आज जन्माष्टमी के दिन हम
फिर बेवफाई करें
तुम जाओ अपनी किसी राधिका के पास
और मैं ढंढूं कोई कृष्ण सा सखा
पता नहीं
कब खत्म होगी ये तलाश
लगता है चिता पर ही होगी
फिर भी
कोशिश जारी रखने में कोई हर्ज नहीं
Sunday, August 9, 2009
कितनी ग़लत बात है ना
जब तुम नहीं आते
मैं राह तकती रहती हूं तुम्हारी
और मेरे ना आने पर तुम
कब तक हम यूं ही राहें तका करेंगे
कब तक यह सिलसिला चलेगा
तुम मेरे हो
मैं तुम्हारी
बस कहने भर के लिए ही ना
कब तुम
संपूर्ण मेरे होओगे
और कब मैं तुम्हारी
ये मिलना
और बिछुड़ना
कब खत्म होगा
कभी तो होगा ही खत्म
मैं उस दिन का इंतजार करूंगी
पर तुम्हारा नहीं
और कहती हूं तुमसे
तुम भी ना करना
फल
प्रतीक्षा के ही मीठे होते हैं
मैं राह तकती रहती हूं तुम्हारी
और मेरे ना आने पर तुम
कब तक हम यूं ही राहें तका करेंगे
कब तक यह सिलसिला चलेगा
तुम मेरे हो
मैं तुम्हारी
बस कहने भर के लिए ही ना
कब तुम
संपूर्ण मेरे होओगे
और कब मैं तुम्हारी
ये मिलना
और बिछुड़ना
कब खत्म होगा
कभी तो होगा ही खत्म
मैं उस दिन का इंतजार करूंगी
पर तुम्हारा नहीं
और कहती हूं तुमसे
तुम भी ना करना
फल
प्रतीक्षा के ही मीठे होते हैं
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